समाज का कड़वा सच-20

किसने कहूँक्या कहूँ ,या लिखूँ ख्वाब मेरे, न समझ कोई अफसाना सख्त हो गया हूँ मैं,
न कर शिकायत ,मेरा मकसद नहीं किसी को डराना, मुझे चिंता है तेरे माँ बाप की, जो लगता हैं सबके लिये जग जाहिर, बुरा लगे तो न कहूँ चालाकियों में तेरा ससुर लगता है शातिर, तु न कर चिंता अब मैं पूरे करूँगा तेरे ख़्वाब,
लड़ना भिड़ना चाहे फिर जो पडे मैं दूंगा सबको जवाब, मैं हूँ यहीं जब तक तेरे ख्वाब न हो पूरे, तू बनकर देख सबकुछ एक तारा, कल रात बहुत हो गई बाते, जहाँ गलत दिखे बस तु कर देना ईशारा .......

पूरी रात गम के अंधरो से लेकर खुशी के उजालों के बीच और एक सुखद सपने में भौर से मुलाकात वो भी पूरे चार दिन के इंतजार के और जितनी मिन्नतों के बाद मैं बडा ही सुखद और भला महसूस कर रहा था , कि तभी पून : शोर शराबे ने मेरी नींद और ख्वाब दोनों ही बेकार कर दिये । उठकर देखा तो पिताजी अपने नित्य क्रम और पूजा पाठ में लगे थे , श्रीमति जी ने लगभग सारे काम खत्म कर दिये थे ,और मुझे जागा देख वह मेरे लिये पानी लेकर एक प्रश्नवाचक मुद्रा में आकर खड़ी हो गयी.........

मैंने हाथ से पानी लिया और उसे पास बैठाकर उनसे उनकी चिन्ता का कारण पूछा, तब वो आँखों में आँसू लिये हुये कहने लगी , जो हुआ वह तो बहुत बुरा था ही लेकिन जो हो रहा है , क्या वह ठीक है????? मैं बात सिर्फ आपकी ही नहीं भीरू भाई के घर की भी कर रही हूँ , यहाँआप उनको याद कर आँसु बहा रहे है , और चिंतित हो कि उनके परिवार का क्या होगा , और उनके घर परिवार में कोई निर्णायक था मजबूत मुखिया न होने के कारण उनके रिश्तेदार घर में फुट डाल लूट मचा रखे हो....

बेसक दोनों ही चीज गलत है आप कर सकते हैं , लेकिन करना नहीं चाहते, तब फिर चिन्ता क्यो ? यदि उस घर को सँभाल सकने कि स्थिति में आप होकर भी सिर्फ आँसु बहाते रहे, तो तब तो आपको चिंतित होते का भी कोई हक़ नही है , अपने नर्म दिल को थोड़ा मजबूत करे , और अपने लिए न सही अपने मित्र के लिए ही उसके परिवार को बर्बाद होने से बचा लिजिए, और शायद हमारे लिए भी यह ठीक होगा , क्योकि मौत के घर में खुशी और मेरे घर में मातम यह सही न जान पड़ता , उठे और दोनों को ठिक करे ,

        आज पाँचवा दिन है , मुझे नहीं लगता कि सब में से किसी ने भी दसक्रिया का विचार भी किया होगा , जो लोग समय पर नियम अनुसार खाना नहीं रख सकते, भला क्या तैयारी कर रहे होंगे , साफ झलकता है , पिताजी कह चूके , अब मैं भी कह रह रही हूँ , अब और चीत्कार और पुकार रात में सुनाई न दे ।
           मैंने कल पूरी रात आपको कई बार बहार  खिड़की से झांकते और पुकारते भी सुना था , और तब विवश हो मुझे जाकर पिताजी को जगाना पड़ा ,आखिर  आप क्यों नहीं मानते कि जाने के बाद कोई नहीं लौटता , यही सृष्टि का नियम है ।

            यदि लौटा सकते तो जब मेरे पिता बीमार थे  ,, तब तो आप और भीरू भाई दोनों ने मिलकर जाने कितनी रातें , उनकी सेवा भी की और कितने अस्पतालों के चक्कर भी काटे ,  कितना कुछ किया आप दोनों ने ,तब तो दोनों साथ थे , और मेरे पिता की मृत्यु के बाद भी जाने कितने ही दिनों तक सारे काम और सभी कार्यक्रम भी आप दोनों ने एक साथ किये , यदि मैं भी आपकी ही तरह रोकर बैठ जाती तो एक साथ मायका और ससुराल में  मातम छा जाता........
               यहाँ तक कि आपको खुद उस सदमें से बाहर निकल पाना संभव नहीं था , क्योंकि आप दोनों ने किसी बेटे से भी बढ़कर फर्ज निभाया था , और कहते हुये वो रोने  लगी , वो रोते हुये कह रही थी , मेरे तरफ से अब उनके अहसानों का बदला चुकाने का समय आ गया है , उठो और आँसू पोंछ , उनकी आत्मा की शांति के लिए ही उनके परिवार को सही रास्ता दिखाओ .......

           उनके रिश्तेदारों का मुँह बंद करो , और उन्हें बता  दो कि ऐसे विपरित स्थिति में भी भीरु की आत्मा अकेली नहीं है , अभी उसके परिवार को संभालने के लिए हम जिन्दा है , तब तो जैसे मुझमे एक नया जोश सा भर गया , और मैं उठ तैयार हो, आज  पूरा मन बना घर से निकलने को बड़ा ही था कि , तभी कैलाश भीरू के पिता को लेकर , एम्बुलेंस में लेकर सीधे मेरे  घर यह कहकर ले आया कि , डॉक्टर ने  थोडा ख्याल रखने  को कहा है , और मुझे नहीं लगता कि इस समय उस घर को इनकी चिन्ता किसी को है....

क्रमशः..........

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1 Comments

Gunjan Kamal

09-Nov-2023 06:39 PM

बेहतरीन भाग

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